Thursday 8 April, 2010

काश चड़ीगढ़ जैसी हो जाये दिल्ली


बॉलीवुड वाले तो दिल्ली आकर मुंबई की सडको को कोसते हैं लेकिन मुझे चंडीगढ़ की सड़के दिल्ली से बहुत बेहतर लगी।
पिछले दिनों पंजाब किंग्स इलेवन और डेल्ही डेयरडेविल्स का आईपीएल मैच देखने के सिलसिले में चण्डीगढ़ जाना हुआ। वैसे भी चण्डीगढ़ देखने की तमन्ना बहुत दिनों से दिल में थी। मैं देखना चाहता था कि आखिर दो राज्यों पंजाब और हरियाणा की राजधानी व केन्द्र शासित प्रदेश चण्डीगढ़ का विकास किस तरह किया गया है। इससे पहले चण्डीगढ़ की तारीफ सिर्फ अपने दोस्तों से ही सुनी थी, जो बताते थे कि वहां हर सड़क एक-दूसरे को समकोण पर काटती है। साथ ही,वहां का माहौल भी बेहद खुशनुमा है।
बहरहाल, पिछले महीने के एक खुशनुमा शनिवार की सुबह मैंने चण्डीगढ़ एयरपोर्ट पर लैण्ड किया। जाहिर है कि राजधानी दिल्ली के चमचमाते एयरपोर्ट से चण्डीगढ़ एयरपोर्ट की तुलना करने पर उसे 10 में से 4 ही नंबर दिए जाएंगे। हालांकि तभी मैंने देखा कि चण्डीगढ़ एयरपोर्ट का मेंटिनेंस खुद गवर्नमेंट कर रही है, जबकि दिल्ली एयरपोर्ट को एक प्राइवेट कंपनी देखती है। जाहिर है कि दोनों एयरपोर्ट का फर्क देखकर उसकी वजह खुद ब खुद मेरी समझ में आ गई। खैर, उदास मन से मैं एयरपोर्ट से बाहर निकला ही था कि बाहर ढोल बजाते पंजाबी मुण्डों को देखकर तबीयत खुश हो गई। गुलाबी पगड़ी और सफेद कुर्ता पहने वे ढोल वाले शायद किसी के स्वागत के लिए आए हुए थे, लेकिन उन्हें देखकर मेरी तबीयत खुश हो गई।
एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही गाड़ी ने चौड़ी सड़कों पर स्पीड पकड़ ली। दिल्ली की भीड़ भरी सड़कों पर घंटों जाम में फंसे रहने के आदी मुझे जैसे इंसान के लिए यह मानों किसी आश्चर्य की तरह था। उससे भी ज्यादा हैरत की बात यह थी कि सड़कों के बराबर में दोनों और बनीं ग्रीन पट्टी उनसे भी ज्यादा चौड़ी थीं। जबकि दिल्ली में गिनी-चुनी सड़कों के ही दोनों और गिनती के पेड़ लगाए हुए हैं। यह पेड़ों की मेहरबानी थी कि वहां की हवा में एक अलग तरह की ताजगी महसूस हो रही थी। बिल्कुल खाली सड़कों पर हवा से बातें करती गाड़ी को देखकर मुझे मजबूरन ड्राइवर से पूछना ही पड़ा कि भैया यहां पर टै्रफिक जाम नहीं लगता क्या? उसने कहा कि सर वैसे तो आज सेटरडे की वजह से सड़कों पर ट्रैफिक कम है, लेकिन आम दिनों में भी यहां जाम नहीं लगता।
इस तरह खाली सड़क पर गाड़ी एयरपोर्ट से कुछ बीस मिनट में चण्डीगढ़ के सेक्टर 17 स्थित होटल में पहंुच गई। होटल में फ्रेश होकर मैं दोबारा से लकी नाम के उस ड्राइवर के साथ चण्डीगढ़ की सड़कों पर निकल पड़ा। पता नहीं क्यों, वहां की खाली पड़ी चौड़ी-चौड़ी सड़कें बार-बार मुझे ऐसा महसूस करा रही थीं कि मानों स्वर्ग लोक में आ गया हंू। यह प्लान करके शहर बसाने के सिस्टम का ही कमाल था कि चण्डीगढ़ में शहर के एक कोने से दूसरे कोने में जाने पर भी आपको ज्यादा वक्त नहीं लगता है। मुझे रास्ते में पड़ने वाले हरेक चौराहे की खूबसूरती निहारते देखकर लकी ने बताया कि ये सभी चौराहे उस सेक्टर की अथॉरिटी द्वारा डिवेलप किए जाते हैं। उसके बाद उनके बीच कॉç पटीशन होता है और सबसे अच्छा चौराहा डिवेलप करने वाले को प्राइज दिया जाता है।
सबसे पहले मैं चण्डीगढ़ के सबसे फेमस प्लेस रॉक गार्डन गया। बहुत बड़े इलाके में फैले इस अनोखे गार्डन को देखकर समझ आ गया कि बेकार चीजों का किस तरह सही उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, यह गार्डन में तमाम बेकार और रद्दी आइट स को दर्शनीय रूप में लगाया गया है। उसके बाद मैं पास ही स्थित सुखना लेक पहंुचा। मॉडर्न सिटी चण्डीगढ़ में इतनी खूबसूरत लेक देखकर दिल खुश हो गया। सिर्फ यह शहर ही नहीं, बल्कि वहां के लोग भी उतने ही अच्छे लगे। गर्मी की वजह से मैंने सुखना लेक के शॉपिंग कॉ पलेक्स में एक शॉप से कोल्ड डिं्रक खरीदनी चाही, लेकिन उस दुकानदार ने बेहद विनम्रता से कहा कि सॉरी मेरे पास 100 के चेंज नहीं हैं, इसलिए आप तीन दुकान छोड़कर दूसरी कोल्ड डि्रंक की दुकान से कोल्ड डिं्रक खरीद सकते हैं। उसके बाद जब मैं वॉश रूम पहंुचा, तो वहां लगी चालू कण्डोम मशीन को देखकर एमसीडी के टायलेट्स पर लगीं बदतर कण्डोम मशीन याद आ गईं। तब मुझे लगा कि इस शहर में वाकई सब कुछ सिस्टम से चलता है।
बहरहाल, शाम को मोहाली के छोटे लेकिन बेहद खूबसूरत ग्राउण्ड में बेहद रोमांचक मैच में डेल्ही डेयरडेविल्स को जीतता देखकर मैं अगले दिन दिल्ली वापस आ गया।