Friday, 25 September 2009
बेटी चाहिए हमें!
आमतौर पर लड़का होने पर ही बड़े पैमाने पर खुशियां मनाई जाती हैं। लड़की हो, तो बड़ा न्यूट्रलसा इमोशन देखने को मिलता है। पहले तो लोग बिल्कुल मायूस ही होते थे, लेकिन अब लगता है, जैसे लोग चाहकर भी अपना इमोशन शो नहीं करना चाहते। जाहिर है, लक्ष्मी घर आने को लेकर लोग अब धीरे-धीरे अच्छी बात मानने लगे हैं।
अब लड़के की बेइंतिहा चाहत रखने वाले हमारे समाज की सोच में बदलाव आ रहा है। सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, तान्या सचदेव, मीरा कुमार और कृष्णा पाटिल जैसी बेटियों ने पैरंट्स को लड़की पैदा करने का हौसला दिया है।
लड़की लड़के से कम नहीं
रिजल्ट किसी छोटे कॉम्पिटीटिव एग्जाम का हो, सिविल सर्विस का हो या फिर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का, लड़कियां हर जगह परचम लहरा रही हैं। यह सच है कि अपने बलबूते जिंदगी की ऊंचाइयां हासिल करने वाली लड़कियों ने लोग और समाज की सोच को बदलने में बड़ा योगदान दिया है।
रिटायर्ड इंजीनियर सुकुमार कहते हैं, 'पहली संतान लड़की होने के बाद सब रिश्तेदारों ने बहुत जोर दिया कि अल्ट्रासाउंड कराकर ही दूसरे बच्चे का चांस लिया जाए, ताकि एक लड़का भी हो जाए। लेकिन मैंने इससे साफ इनकार कर दिया और अपना पूरा ध्यान लड़की की पढ़ाई-लिखाई पर लगाया। आज वह एक बड़ी कंपनी में सीनियर मैनेजर है। उसके रिश्ते के लिए मेरे पास लड़कों की लाइन लगी हुई है। अब तो मैं ही लड़कों को अपनी लड़की से कम सैलरी की वजह से रिजेक्ट कर देता हूं।'
बुढ़ापे का सहारा
लड़के की चाहत रखने वाले तमाम मां-बाप की सबसे बड़ी सोच यही होती है कि लड़का उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लेकिन आजकल लड़के उनकी सोच पर खरे नहीं उतर रह। लड़की तो शादी होने पर ही ससुराल जाती है, लेकिन लड़के तो उससे पहले ही पढ़ाई के लिए बाहर चले जाते हैं और फिर करियर व पैसे की चाह में पैरंट्स से दूर हो जाते हैं। फिर खुदा न खस्ता अगर ढंग की बहू नहीं मिली, तो जीना और भी दूभर। दूसरी ओर, लड़की ससुराल जाकर भी पैरंट्स की उतनी ही फिक्र करती है। हाउस वाइफ सुमन बताती हैं, 'मेरे पति की असमय ही एक्सिडेंट में डेथ हो गई थी। उसके बाद मैंने दोनों बेटा-बेटी को बड़ी मुश्किल से पढ़ाया। लड़की की सीए बनने के बाद शादी कर दी और लड़का इंजीनियरिंग करने बाहर चला गया। पढ़ाई पूरी करके उसने अपनी बैचमेट से शादी करली और यूएस में सेटल हो गए। फिलहाल मेरे लिए तो मेरी बेटी ही बुढ़ापे का सहारा है।'
बोझ नहीं है लड़की
लड़की ना चाहने के पीछे पैरंट्स की सोच यह भी होती है कि उसकी शादी के लिए दहेज का इंतजाम करना पड़ेगा और लड़के वालों के आगे झुकना पड़ेगा। लेकिन आजकल की इंडिपेंडेंट लड़कियों ने मां-बाप की दहेज की चिंता दूर कर दी है। गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में क्लर्क रमेश कहते हैं, 'बेटी के जन्म के वक्त एक बार तो दिमाग में आया था कि इसकी शादी कैसे होगी? लेकिन फिर मैंने टेंशन छोड़कर उसकी पढ़ाई पर ध्यान दिया। मेरी बेटी पढ़-लिखकर आर्किटेक्ट बन गई। लड़के वालों ने बिना दहेज के ही मांग लिया। उसकी शादी के दौरान मुझे इस बात का जरा भी अहसास नहीं हुआ कि मैं किसी लड़की का लाचार बाप हूं।'
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