Saturday 13 December, 2008

नहीं सूख रहे आतंक के जख्म



मुंबई आतंकवादी हमले को बीते करीब-करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन लोगों के जेहन से उसकी खैफनाक यादें अभी भी नहीं मिट पा रही हैं। कुछ लोग अवचेतन अवस्था में खुद पर हमले के डर से दो चार हो रहे हैं, जबकि कइयों की रातों की नींद गायब हो चुकी है।


मुंबई में हुए आतंकवादी हमले से न सिर्फ जान-माल का काफी नुकसान हुआ है, बल्कि लोगों को गहरा मानसिक आघात भी पहुंचा है। हालांकि उन हमलों को करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन उस दौरान टेलिविजन और अखबारों में दिखाए गए खतरनाक दृश्य अभी भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे। `बॉलिवुड सिटी´ पर हुए इस हमले ने कई सिलेब्रिटीज को भी प्रभावित किया है। खबर है कि आतंकवादी हमले से डिस्टर्ब हुए आमिर ने अपनी आने वाली फिल्म `गजनी´ का प्रमोशन आगे खिसका दिया है। पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक आमिर को नवंबर के अंत में `गजनी´ का प्रमोशन शुरू करना था, लेकिन 26 नवंबर को हुए हमले ने उन्हें डिप्रेशन में ला दिया है। इसी वजह से उन्होंने अपनी फिल्म के प्रमोशन आगे खिसका दिया। आमिर की ही तरह कई और सिलेब्रिटीज भी इसी तरह की परेशानी से ग्रस्त हैं।
सिर्फ सिलेब्रिटी ही नहीं, इस आतंकवादी हमले ने आम आदमी को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। आईटी प्रफेशनल अंकुर बताते हैं, `आतंकवादियों और कमांडोज के बीच लगातार हो रही गोलीबारी, आग और धमाकों के सीन मेरे जेहन से निकल नहीं पा रहे हैं। टीवी देखते हुए अभी भी मेरी आंखों के सामने गोलीबारी और धमाकों के वही सीन छाने लगते हैं।´ दिल्ली यूनिवरसिटी की स्टूडेंट मीनाक्षी को इन हमलों की वजह से नींद नहीं आने की परेशानी हो गई है। उन्होंने बताया, `आतंकवादी जिस दर्दनाक तरीके से लोगों पर गोलियां बरसा रहे थे, उसे मैं भूल नहीं पा रही हूँ । दिन के वक्त तो मैं फिर भी ठीक रहती हूं, लेकिन रात को मुझे बहुत डर लगता है। डरावने सपने आने की वजह से मेरी आंख खुल जाती है और फिर दोबारा नींद नहीं आती।´
गौरतलब है कि यह पहला ऐसा आतंकवादी हमला था, जिस पर काबू पाने में सुरक्षा बलों को इतना लंबा वक्त लगा। साथ ही, टेलिविजन चैनलों पर लगातार जवाबी कार्रवाई का लाइव टेलिकास्ट किया जा रहा था। इस बात ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। बिजनेस मैन राजीव कहते हैं, `उन दिनों हमारा कामकाज काफी हद तक ठप हो गया था। जिसे देखो, वही मुंबई आतंकवादी हमले की चर्चा करता नजर आता था। हम भी लगातार टीवी देखते रहते थे। तब तो उत्सुकता और जोश की वजह से हमने वह प्रसारण देखा, लेकिन उसका दुष्प्रभाव अब समझ आ रहा है। अब हालत यह हो गई है कि थोड़ा-बहुत शोर या पटाखे की जोरदार आवाज ही मुझे भीतर तक कंपा देती है।´
जाने-माने साइकाटि्रस्ट डॉक्टर समीर पारिख कहते हैं कि हमले के वक्त वहां मौजूद लोगों और उनके करीबी रिश्तेदारों को इस तरह की शिकायत होने की ज्यादा संभावना है। यह एक तरह की साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है, जिसके तहत हम ट्रॉमा को भूल नहीं पाते और लगातार उसे महसूस करते रहते हैं। रही बात टेलिविजन पर आतंकवादियों व सुरक्षा बलों की लड़ाई और तबाही के सीन देखने वालों की, तो उनकी परेशानी भी स्वाभाविक है। इस तरह की परेशानी से ग्रस्त लोगों को अपने करीबी लोगों के साथ बातचीत करके अपनी परेशानी साझा करनी चाहिए। साथ ही, काम में मन लगाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी हादसे के तीन-चार हफ्ते बाद तक उसकी बुरी यादें जेहन में रहती हैं और फिर सब सामान्य होने लगता है। लेकिन उसके बाद भी परेशानी दूर ना हो, तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

Friday 12 December, 2008

यह राह नहीं आसां.....


पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने `लिव इन´ के मुद्दे पर बदलाव के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि लंबे अरसे से `लिव इन´ में रह रही महिलाओं को पत्नी जैसे अधिकार दिए जाएं। भले ही हमारे समाज ने कितनी भी तरक्की कर ली हो, लेकिन अभी भी `लिव इन´ को मान्यता नहीं मिली है। ऐसे में इस प्रस्ताव ने नई बहस को जन्म दे दिया है :

भारत बहुत तेजी से बदल रहा है। साथ ही यहां रहने वाले लोग और उनके रहने-सहने का अंदाज भी बदल रहा है। पहले जहां सिर्फ गिने-चुने फील्ड्स के लोग ही रात की शिफ्ट में काम किया करते थे, वहीं आज ऐसे फील्ड्स की कमी नहीं जिनमें चौबीसों घंटे काम होता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़के, बल्कि लड़कियां भी इन फील्ड्स में काम कर रही हैं। येलड़के-लड़कियां छोटे शहरों से आकर मेट्रोज में अपने भविष्य की तलाश रहे हैं। जाहिर है कि घर से दूर रहने की वजह से उन्हें कहीं ना कहीं भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है। जवानी की दहलीज पर खड़े होने की वजह से अपोजिट सेक्स का पार्टनर उन्हें ज्यादा अट्रेक्ट करता है। खासतौर पर लड़कियों को जो कि अभी तक बाप और भाई के सिक्युरिटी कवर में रहने की आदी होती हैं। फाइनेंशल और सिक्युरिटी जरूरतों की वजह से वे किसी लड़के का हाथ थाम लेती हैं। करियर की शुरुआती स्टेज में होने की वजह से वे लोग शादी जैसा कदम नहीं उठा पाते। ऐसे में बिना शादी किए पति-पत्नी की तरह साथ रहने के लिए उनके पास `लिव इन´ का ऑप्शन होता है।

धरती पर बन रही हैं जोडिया
यूथ को हमेशा से बदलाव और विद्रोह के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि वह हमेशा कुछ नया करने की सोचता है। माना जाता है कि जोडिया स्वर्ग में बनती हैं, लेकिन माडर्न यूथ इस बात से इत्तफाक नहीं रखता। अब वह पैरंट्स द्वारा गले में घंटी की तरह से बांध दिए जाने वाले किसी भी लाइफ पार्टनर से बंधने के लिए तैयार नहीं है। वह स्वर्ग में बनी जोडियों को निभाने की बजाय धरती पर ही काफी सोच समझ कर जोड़ी बनाना चाहता है। अक्सर बड़े-बूढ़ों युवाओं को आशीर्वाद देते देखे जाते हैं कि तुम्हे अच्छा जीवनसाथी मिलें, क्योंकि उनका मानना होता है कि एक बार जो लाइफ पार्टनर आपसे जुड़ जाता है, उसे सारी जिंदगी निभाना होता है। जबकि यूथ इसके अपोजिट सोचने लगा है। अकाउंट्स प्रफेशनल अंकित कहते हैं, `मैं अपने परिवार वालों द्वारा मेरे साथ बांध दिए गए किसी भी पार्टनर के साथ अपनी सारी जिंदगी बर्बाद करने को तैयार नहीं हूँ। हमें उसके साथ कुछ दिन रहने और एक-दूसरे का जानने समझने का मौका मिलना चाहिए। अगर हमें एक-दूसरे का साथ भाता है, तो शादी कर लें। नहीं तो मैं अपने रास्ते और तुम अपने रास्ते।´

इक आग का दरिया है
भले ही युवा `लिव इन´ को एक अभिनव परिवर्तन के रूप में देख रहे हों, लेकिन अगर वास्तविकता के धरातल पर आकर देखा जाए, तो यह राह इतनी आसान नहीं है। शुरुआत में लड़कियों को भी लिव इन अच्छा लगता है। आखिरकार उन्हें हर वक्त साथ निभाने वाला पार्टनर जो मिल जाता है, लेकिन इस रिश्ते की कड़वी सच्चाई उन्हें तब पता लगती है, जब उनका साथी साथ छोड़ कर जाने की बात कहता है। ऐसे में पैरंट्स, समाज और यहां तक की कानून भी उनकी कोई मदद करने का राजी नहीं होता। और अगर वह प्रेग्नेंट हो गई है, तो उसके पास दुनिया की जिल्लतें और ताने सुनने के अलावा कोई चारा नहीं होता। मीडिया प्रफेशनल सारिका (बदला हुआ नाम )बताती हैं, `जब मैं मॉस कम्युनिकेशन का कोर्स कर रही थी, तो राहुल मेरी जिंदगी में आया। मैंने हॉस्टल छोड़कर उसके साथ रहना शुरू कर दिया। कोर्स के दौरान का वक्त काफी हंसी-खुशी बीता। उसके बाद उसे एक अच्छी जगह नौकरी मिल गई। साथ ही मैंने उसे एक और खुशखबरी सुनाई कि मैं उसके बच्चे की मां बनने वाली हूँ, तो वह मुझे छोड़कर भाग गया। मैं डिप्रेशन में आकर स्यूसाइड करने जा रही थी। वह तो शुक्र है कि मेरी कुछ फ्रेंड्स ने सहारा दिया और मेरा अबॉर्शन करवा दिया। सच में वह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी।´

चिंतित है कोर्ट और सरकार
तमाम तरह की परेशानियों की बावजूद `लिव इन´ में रहने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि अब सरकार को भी `लिव इन´ में रहकर परेशानियों का शिकार हो रही महिलाओं के बारे में सोचना पड़ रहा है। पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसके तहत क्रिमिनल प्रोसिजियर कोड की धारा 125 में बदलाव करके पर्याप्त समय से `लिव इन´ में रह रही महिला को पत्नी जैसे अधिकार देने की बात कहीं गई है। हालांकि कई सामाजिक संगठनों ने इसे `लिव इन´ को बढ़ावा देने का प्रयास बताया है। समाज शास्त्री अभय कुमार दूबे कहते हैं, `मैं इस प्रस्ताव का स्वागत करता हूँ । बदलते वक्त में हमारे यहां सब कुछ बदल रहा है। पहले सिर्फ दिन में काम करने वाले युवा अब पूरी रात काम करने लगे हैं। ऐसे में उनकी सेक्सुअल जरूरतों में भी बदलाव आ रहा है। यही वजह है कि यूथ शादी की परंपरा को भी बदलना चाह रहा है। अगर पश्चिमी देशों पर नजर डालें, तो कई देशों में काफी लोग `लिव इन´ में रह रहे हैं। भारत में भी इस कॉन्सेप्ट को रोका नहीं जा सकता। इसलिए हमें इसमें रहने की आदत डालनी होगी। साथ ही लड़कियों की सुरक्षा के उपाय भी करने होंगे।´

महिलाओं के हित में है प्रस्ताव
महिला हितो के लिए काम करने वाले संगठन सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर रंजना कुमारी भी महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव का समर्थन करती हैं। उन्होंने बताया, `इस प्रस्ताव में ऐसी महिलाओं के हितों की बात की गई है, जिन्हें समाज, परिवार और पुरुष तिरस्कृत करते हैं। उन्हें तरह-तरह के अभद्र विशेषणों से नवाजा जाता है। जबकि पुरुष को कोई कुछ नहीं कहता। `लिव इन´ हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है। पैसे और पावर के बल पर पुरुष हमेशा से पत्नी के अलावा किसी दूसरी औरत का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। वह उसे इस्तेमाल करके कभी भी छोड़ने के लिए स्वतंत्र होते हैं। इस तरह का कानून बनने के बाद उन्हें किसी औरत से फायदा उठाने से पहले सोचना होगा कि बाद में उसकी जिम्मेदारी भी उठानी होगी। इससे `लिव इन´ के मामलों में होने वाली धोखाधड़ी में कमी आएगी। और रही इस प्रस्ताव के विरोध की बात, तो मुझे लगता सिर्फ `लिव इन´ के नाम पर महिलाओं से फायदा उठाने वाले पुरुष ही इसका विरोध कर रहे हैं।´