
अक्सर लोकल लेवल पर खेलने वाले प्लेयर्स को शिकायत रहती है कि उन्हें मीडिया कवरेज नहीं मिलती। इन शिकायतों में कितनी सच्चाई है। अगर ऐसा होता है, तो क्यों होता है? इन्हीं सारे सवालों का जवाब तलाशती एक रिपोर्ट:
एक जाने-माने हिंदी अखबार के ऑफिस के बाहर बैठा नौजवान काफी निराश और हताश नजर आ रहा है। वह एक क्रिकेटर है, जिसने एक लोकल टूर्नामेंट में बेहतरीन बॉलिंग की है। अगर अखबार में उसके बारे में कुछ छप जाए, तो उसे आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है। इसी वजह से वह तीन दिनों से अखबार के ऑफिस के चक्कर काट रहा है। काफी कोशिश के बाद उसकी सिंगल कॉलम खबर छप गई। हालांकि वह नौजवान इससे कतई खुश नहीं था, क्योंकि वह फ्रंट पेज पर छपना चाहता था। इसलिए उसने अपने दम पर ऐसा करने की ठानी और एक दिन कामयाब भी हुआ। आज हम लोग उस नौजवान को भारतीय क्रिकेट टीम के चमकते सितारे फास्ट बॉलर प्रवीण कुमार के रूप में जानते हैं।
यह तो हुई प्रवीण कुमार की बात, जिन्होंने शुरुआती लेवल पर मीडिया की बहुत ज्यादा अटेंशन नहीं मिलने के बावजूद भी खुद को इस लायक बना लिया कि आज मीडिया उनके पीछे भागता है। लेकिन सवाल यह है कि ऐसे कितने भाग्यशाली खिलाड़ी होते हैं, जो लोकल लेवल से खेलकर कामयाब होते हैं? हरेक खेल से जुड़े जूनियर प्लेयर्स को यह शिकायत रहती है कि मीडिया में उनकी ज्यादा कवरेज नहीं होती, जिस वजह से उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता। कई बार लोकल लेवल पर उभरने वाली कई प्रतिभाएं इसी वजह से सामने नहीं आ पातीं। सॉफ्टवेयर प्रफेशनल राजीव बताते हैं कि मैं बचपन में नैशनल लेवल पर फुटबॉल खेला था। इसके बावजूद मेरे पापा ने मुझे फुटबॉल में करियर नहीं बनाने दिया। जबकि वॉलिबॉल में स्टेट लेवल पर खेलने वाली मेरी फ्रेंड कीर्ति को आगे खेलने का मौका मिल गया, क्योंकि अखबार में उसका फोटो छपा था। काश किसी अखबार ने मेरा भी फोटो छाप दिया होता, तो आज मैं भी फुटबॉल प्लेयर होता।
आखिर क्या वजह है कि मीडिया हाउस लोकल लेवल पर खेलने वाले प्लेयर्स को इतना अटेंशन नहीं देते? नई दिल्ली से छपने वाले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक के स्पोट्र्स इंचार्ज कहते हैं, `ऐसा कुछ नहीं है कि हम लोग लोकल या स्टेट लेवल पर खेलने वाले प्लेयर्स को कवरेज नहीं देते। हमने दिल्ली के कई टीनएजर्स को कवरेज देकर आगे बढ़ाया है। यह सच है कि हमारे लिए लोकल लेवल पर खेलने वाले प्लेयर्स के बीच टैलंट तलाशना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में अगर कोई प्लेयर खुद हमारे पास आता है, तो हम उसे जरूर अटेंशन देते हैं।´ जबकि जाने-माने क्रिकेट कोच संजय भारद्वाज इस मुद्दे को एक अलग नजरिए से देखते हैं, `वह कहते हैं कि अगर न्यूजपेपर एक लोकल प्लेयर की फोटो सचिन तेंडुलकर के बराबर में छाप दें,तो यह उसके साथ अन्याय होगा। अगर उन्हें लोकल लेवल पर ही अच्छी कवरेज मिलने लगेगी, तो उनमें आगे बढ़ने की तमन्ना खत्म हो जाएगी। साथ ही अगर आपको शुरुआती लेवल पर ही अच्छी कवरेज मिलने लगे, तो जल्द करियर खत्म हो जाने के चांस भी बढ़ जाते हैं। ऐसा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में होता है।´
प्रशांत जैन की आई आई ऍम सी से आपने कोर्स किया हुआ है इसलिए जानकारी लेना चाहता था की की iimc से कोर्स करने के बाद जॉब की समस्या तो नहीं जाती है क्यों की मैं हमेसा से ही मीडिया मे जाना चाहता हूँ आप उचित मार्गदर्शन दे की क्या करना चाहिए और मीडिया के किस छेत्र मे जाना चाहिए !!!
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