
मुंबई आतंकवादी हमले को बीते करीब-करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन लोगों के जेहन से उसकी खैफनाक यादें अभी भी नहीं मिट पा रही हैं। कुछ लोग अवचेतन अवस्था में खुद पर हमले के डर से दो चार हो रहे हैं, जबकि कइयों की रातों की नींद गायब हो चुकी है।
मुंबई में हुए आतंकवादी हमले से न सिर्फ जान-माल का काफी नुकसान हुआ है, बल्कि लोगों को गहरा मानसिक आघात भी पहुंचा है। हालांकि उन हमलों को करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन उस दौरान टेलिविजन और अखबारों में दिखाए गए खतरनाक दृश्य अभी भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे। `बॉलिवुड सिटी´ पर हुए इस हमले ने कई सिलेब्रिटीज को भी प्रभावित किया है। खबर है कि आतंकवादी हमले से डिस्टर्ब हुए आमिर ने अपनी आने वाली फिल्म `गजनी´ का प्रमोशन आगे खिसका दिया है। पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक आमिर को नवंबर के अंत में `गजनी´ का प्रमोशन शुरू करना था, लेकिन 26 नवंबर को हुए हमले ने उन्हें डिप्रेशन में ला दिया है। इसी वजह से उन्होंने अपनी फिल्म के प्रमोशन आगे खिसका दिया। आमिर की ही तरह कई और सिलेब्रिटीज भी इसी तरह की परेशानी से ग्रस्त हैं।
सिर्फ सिलेब्रिटी ही नहीं, इस आतंकवादी हमले ने आम आदमी को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। आईटी प्रफेशनल अंकुर बताते हैं, `आतंकवादियों और कमांडोज के बीच लगातार हो रही गोलीबारी, आग और धमाकों के सीन मेरे जेहन से निकल नहीं पा रहे हैं। टीवी देखते हुए अभी भी मेरी आंखों के सामने गोलीबारी और धमाकों के वही सीन छाने लगते हैं।´ दिल्ली यूनिवरसिटी की स्टूडेंट मीनाक्षी को इन हमलों की वजह से नींद नहीं आने की परेशानी हो गई है। उन्होंने बताया, `आतंकवादी जिस दर्दनाक तरीके से लोगों पर गोलियां बरसा रहे थे, उसे मैं भूल नहीं पा रही हूँ । दिन के वक्त तो मैं फिर भी ठीक रहती हूं, लेकिन रात को मुझे बहुत डर लगता है। डरावने सपने आने की वजह से मेरी आंख खुल जाती है और फिर दोबारा नींद नहीं आती।´
गौरतलब है कि यह पहला ऐसा आतंकवादी हमला था, जिस पर काबू पाने में सुरक्षा बलों को इतना लंबा वक्त लगा। साथ ही, टेलिविजन चैनलों पर लगातार जवाबी कार्रवाई का लाइव टेलिकास्ट किया जा रहा था। इस बात ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। बिजनेस मैन राजीव कहते हैं, `उन दिनों हमारा कामकाज काफी हद तक ठप हो गया था। जिसे देखो, वही मुंबई आतंकवादी हमले की चर्चा करता नजर आता था। हम भी लगातार टीवी देखते रहते थे। तब तो उत्सुकता और जोश की वजह से हमने वह प्रसारण देखा, लेकिन उसका दुष्प्रभाव अब समझ आ रहा है। अब हालत यह हो गई है कि थोड़ा-बहुत शोर या पटाखे की जोरदार आवाज ही मुझे भीतर तक कंपा देती है।´
जाने-माने साइकाटि्रस्ट डॉक्टर समीर पारिख कहते हैं कि हमले के वक्त वहां मौजूद लोगों और उनके करीबी रिश्तेदारों को इस तरह की शिकायत होने की ज्यादा संभावना है। यह एक तरह की साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है, जिसके तहत हम ट्रॉमा को भूल नहीं पाते और लगातार उसे महसूस करते रहते हैं। रही बात टेलिविजन पर आतंकवादियों व सुरक्षा बलों की लड़ाई और तबाही के सीन देखने वालों की, तो उनकी परेशानी भी स्वाभाविक है। इस तरह की परेशानी से ग्रस्त लोगों को अपने करीबी लोगों के साथ बातचीत करके अपनी परेशानी साझा करनी चाहिए। साथ ही, काम में मन लगाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी हादसे के तीन-चार हफ्ते बाद तक उसकी बुरी यादें जेहन में रहती हैं और फिर सब सामान्य होने लगता है। लेकिन उसके बाद भी परेशानी दूर ना हो, तो किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
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