Tuesday 12 May, 2009
कहीं आप भी पप्पू तो नहीं!
भले ही इलेक्शन कमिशन अपने पप्पू कैंपेन को सफल मान रहा हो ना मान रहा हो, लेकिन युवाओं को अपने वोट ना डालने वाले फ्रेंड्स को पप्पू कहकर चिढ़ाने का एक नया तरीका जरूर मिल गया।
वोटिंग खत्म हो जाने के बाद इलेक्शन का शोर भले ही थम गया हो, लेकिन पप्पू अभी भी हॉट टॉपिक बना हुआ है। लोग एक-दूसरे से आपने वोट डाला या नहीं पूछने की बजाय आप पप्पू तो नहीं बने पूछ रहे हैं? जाहिर है कि ऐसी कंडिशन में वोट नहीं डालने वालों यानी की पप्पूओं की खूब फजीहत हो रही है। एक एमएनसी में बतौर सीनियर मैनेजर काम करने वाले रोहन आलस की वजह से अपने वोटिंग राइट का इस्तेमाल करने नहीं गए। इस तरह रोहन ने वी डे को हॉलिडे के रूप में सेलिब्रेट किया, लेकिन अगले दिन ऑफिस पहंचकर उनका काफी मजाक बना। रोहन ने अपने एक्सपीरियंस के बारे में बताया, क्ववोटिंग से अगले दिन जब मैं ऑफिस पहंचा, तो हाथ मिलाते हुए मेरे कलीग आशीष की नजर सबसे पहले मेरे दांए हाथ की पहली उंगली पर गई। उस पर वोटिंग इंक का काला निशान ना देखकर उसने यह बात सारे ऑफिस में फैला दी। बस फिर क्या था, सभी लोगों ने मुझे पप्पू कहकर चिढ़ाना शुरू कर दिया।
कुछ इसी तरह का एक्सपीरियंस एक मीडिया ऑगेüनाइजेशन से जुड़े शिरीष का रहा। ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाने की वजह से वह वोट नहीं डाल पाए। इसका खामियाजा उन्हें अपने दोस्तों के बीच पप्पू बनकर भुगतना पड़ा। शिरीष कहते हैं, मेरे ऑफिस में वोटिंग के लिए आने-जाने के वक्त में थोड़ी छूट दी गई थी, इसलिए मैंने सोचा था कि शाम को जल्दी लौटकर वोट कर दंूगा। लेकिन ऑफिस से जल्दी निकलने के बावजूद मैं वक्त से वोट डालने नहीं पहंुच सका। उस दिन से लेकर आज तक जिस भी दोस्त से मिल रहा हंू। सभी पप्पू कहकर मेरा मजाक बना रहे हैं। न सिर्फ अपनी या ऑफिस, बल्कि इलेक्शन कमिशन की गलती से भी पप्पू बनने वाले लोगों को भी काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। पेशे से टीचर निखिल जब अपना वोटर आई कार्ड लेकर वोट डालने पहंुचे, तो वोटर लिस्ट में अपना नाम नहीं पाकर उन्हें बेहद गुस्सा आया। जाहिर है कि वोटर लिस्ट में नाम नहीं होने की वजह से निखिल को वोट नहीं डालने दिया गया। नतीजतन निखिल को भी उनके दोस्तों ने पप्पू का खिताब दे डाला।
पब्लिक के बीच पप्पू बनने का डर इस कदर पसरा हुआ है कि फॉर्म 49 ओ का इस्तेमाल करके नेगेटिव वोट डालने वालोंया फिर किसी को भी वोट नहीं डालने वालों ने भी बूथ ऑफिसर से रिक्वेस्ट करके अपनी पांचवीं उंगली में वोटिंग इंक से काला निशान बनवा लिया, ताकि लोग उन्हें पप्पू ना कहें। ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़के ही पप्पू फोबिया का शिकार हो रहे हैं, बल्कि वोट नहीं डालने वाली लड़कियां भी इसका शिकार हुई हैं। यह बात और है कि फ्रेंड्स उन्हें पप्पू की बताय पप्पी कहकर चिढ़ा रहे हैं। डीयू स्टूडेंट दिव्या अपने इलाके का कोई भी कैंडिडेट उनके वोट के लिए सही नहीं लगा। पसंद नहीं आया। खैर, वोटिंग डे को तो दिव्या ने घर पर आराम फरमाया, लेकिन अगले दिन फ्रेंड्स के बीच उनका खूब तमाशा बना। दिव्या कहती हैं, मेरे फ्रेंड्स हाथ मिलाने पर सबसे पहले हाथ पर वोटिंग इंक का साइन देख रहे थे। मेरे हाथ पर वह साइन नहीं देखकर उन्होंने मुझे पप्पी कहकर खूब चिढ़ाया। तब मुझे अहसास हुआ कि इससे अच्छा, तो इससे अच्छा अगर मैं वोट डाल देती, तो कम से कम पप्पी तो ना बनना पड़ता।
अभी तक के इलेक्शनों में लोग-बाग वोट डालने के बाद लगाई जाने वाली ब्लैक इंक को भद्दा निशान मानकर कैसे भी हटाने की कोशिश करते थे, लेकिन इस बार पप्पू कैंपेन ने इसे न्यू फैशन स्टेटमेंट बना दिया। एक पोलिंग बूथ पर वोटिंग इंक लगाने का काम कर रहे मनोज (बदला हुआ नाम) ने बताया कि पहले जहां लोग नामचारे के लिए ब्लैक इंक का निशान बनवाते थे, वहीं अबकी बार वे बाकायदा कहकर ठीकठाक दिखने वाला निशान बनवा रहे थे। यही नहीं, कुछ युवाओं ने तो बाकायदा अपने चैट स्टेट्स में मैंने वोट डाला हैं और मैं पप्पू नहीं बनां अनाउंस किया है।
हालांकि पप्पू नाम वाले अभी भी परेशान हैं, क्योंकि उन्हें तो वोट डालने के बाद भी पप्पू ही कहा जा रहा है!
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मेरी राय में असली पप्पू तो इलेक्शन कमीशन है। पहली बात इतनी गर्मी में चुनाव रखे, दूसरी बात लिस्ट में आधे से ज्यादा नाम गायब हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जाकिर जी की राय बिल्कुल सही है...कुछ ऎसा ही यहां भी लिखा गया है..
ReplyDeletehttp://rex-aashiyana.blogspot.com/2009/05/blog-post.html