Thursday, 16 October 2008

अभी भी रात अँधेरी है!



भले ही आज भारत बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है, लेकिन महिलाओं की हालत में अपेक्षित सुधार नहीं आ पा रहा है। इस तरक्की का एक स्याह चेहरा यह भी है कि हमारे यहां पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चलने की कोशिश कर रही महिलाओं के लिए रात में काम करने का सुरक्षित माहौल मौजूद नहीं है। और तो और सिलेब्रिटी भी इस डर से अंजान नहीं हैं:

अक्सर गांवों या छोटे शहरों की लड़कियों द्वारा लड़कों की बराबरी करने की कोशिश करने पर उन्हें ताना दिया जाता है, `तू लड़कों की बराबरी कैसे करेगी। क्या तू रात को अकेली घर से बाहर जा सकती है?´ इस तरह उनके मां-बाप और रिश्तेदार लड़कियों पर लगाम लगाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते। यह तो हुई गांवों और छोटे शहरों की बात। अब सवाल यह उठता है कि क्या बड़े शहरों खासतौर पर मेट्रोज में भी लड़कियों रात को अपने घर से बाहर निकल सकती हैं? क्या वहां नाइट शिफ्ट में काम करने वाली लड़कियां सुरक्षित अपने घर पहुँच पाती हैं।

हाल ही में एसोचैम सोशल डिवेलपमेंट फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वे में खुद महिलाओं ने इन सवालों का जवाब दिया है। सर्वे के नतीजों के मुताबिक यह एक कड़वा सच है कि महानगरों में नाइट शिफ्ट में काम करने वाली 53 परसेंट महिलाएं अपने आपको सेफ महसूस नहीं करतीं। इनमें बीपीओ, आईटी, सिविल एविएशन, नर्सिंग होम समेत सभी सेक्टरों में काम करने वाली महिलाएं शामिल हैं। यह सर्वे दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद और लुधियाना जैसे बड़े शहरों में किया गया है।

टीवी एक्ट्रेस जसवीर कौर रात को होने वाली छेड़खानी की घटनाओं से बखूबी वाकिफ हैं। वह कहती हैं, `मेरे साथ कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, जब बाइक या गाड़ी सवार लड़कों ने मेरा पीछा किया। शुरुआत में मैं इस तरह की घटनाओं से बेहद डर जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे आदत पड़ गई है। हालांकि अब भी रात को मैं काफी सावधानी से सड़क पर निकलती हूँ । मेरी कोशिश रहती है कि मेरे गेटअप से किसी को यह आइडिया ना हो कि इस गाड़ी को कोई लड़की चला रही है। इसके अलावा आखिरी हथियार के रूप में एक खंजर हमेशा मेरे पास रहता है।´

मशहूर फैशन डिजाइनर मंदिरा विर्क महिलाओं के लिए बढ़ते क्राइम से काफी परेशान नजर आती हैं। उन्होंने बताया, `फैशन जैसी ग्लैमरस इंडस्ट्री से जुड़ी होने की वजह से मुझे अक्सर देर रात तक घर से बाहर रहना होता है। कई बार तो मैं अपना स्टोर ही 12 बजे तक बंद करती हूँ । ऐसे में खुद गाड़ी ड्राइव करके घर जाना कतई संभव नहीं है। इसके लिए मैंने ड्राइवर रखा हुआ है, जो मेरे घर में ही रहता है। इसके बावजूद रात को अगर कभी गाड़ी ड्राइव करनी पड़ जाती है, तो मुझे बहुत घबराहट होती है। कई बार लड़कों की गाड़ी और बाइक ने मेरा पीछा किया है। ऐसे में पुलिस बुलाने की बजाय जान बचाकर घर भागना ही बेहतर लगता है। हर वक्त बहुत सारी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं और दिमाग में टेंशन रहती है, लेकिन क्या करें क्राइम के डर से काम बंद करके घर पर नहीं बैठ सकते।´

जानी-मानी न्यूज एंकर नीलम शर्मा इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि रात को महानगरों का माहौल महिलाओं के लिए कतई सुरक्षित नहीं है। वह कहती हैं, `मीडिया जैसे फील्ड में होने की वजह से अक्सर आपको नाइट शिफ्ट करनी पड़ती है या फिर ऑफिस से थोड़ा देर से निकलना होता है। ऐसे में एक महिला का सही-सलामत घर पहुंचना बेहद मुश्किल है। उस पर भी अगर वह अपनी गाड़ी खुद ड्राइव करके घर जाती है, तो बहुत मुश्किलें आती हैं।´ नीलम हाल ही में मौत का शिकार हुई एक अंग्रेजी न्यूज चैनल की पत्रकार सॉम्या विश्वनाथन का जिक्र करते हुए बताती हैं, `मैं भी अपने ऑफिस से कैब नहीं लेती और अपनी गाड़ी खुद ही ड्राइव करती हूँ । ऐसे में कई बार बहुत खराब कंडिशन बन जाती है। कहीं लड़कों की गाडियाँ पीछा करती हैं, तो कहीं रेड लाइट पर खड़े लफंगे परेशान करते हैं। ऐसे में अगर गाड़ी भी खराब हो जाए, तो फिर ऊपर वाला ही मालिक है।´

मुंबई बेस्ड रैंप मॉडल निगार खान अपने शहर की सुरक्षा व्यवस्था से कुछ हद तक संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा, `मुंबई की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह शहर कभी सोता नहीं है। ऐसे में अगर आप अपना ख्याल रखना जानती हैं, तो आपको उतनी परेशानी नहीं आएगी। अगर आप अपनी ओर से ही केयर फुल नहीं हैं, तो फिर आपको प्रॉब्लम आ सकती है। मुझे लगता है कि दिल्ली और दूसरे महानगरों के मुकाबले मुंबई में लड़कियों के लिए रात का माहौल सुरक्षित है। हालांकि अपवाद हर जगह मौजूद हैं। वैसे अभी तक मुझे पर्सनली इस तरह की कोई परेशानी नहीं आई।´

पत्रकारिता जगत का जाना-माना नाम मानी जाने वाली वर्तिका नंदा की राय इस मामले में थोड़ा हट कर है। उन्होंने कहा, `मेरा मानना है कि कोई भी क्राइम होने के बाद उस पर रिएक्ट करने का हमारा तरीका सही नहीं है। इस तरह से क्राइम को और बढ़ावा मिलता है। और रही बात लड़कियों के रात को अनसेफ होने की, तो हम सिर्फ रात ही नहीं दिन में भी अनसेफ हैं। दिन में भी बसों में सफर करने वाली लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की जाती है। यही छेड़छाड़ रात को रेप और हत्या जैसे मामलों में बदल जाती है। इससे बचने के लिए पहले हमें दिन की घटनाओं पर रोक लगानी होगी। रात को अकेले ड्राइव करते वक्त कई बार मुझे भी डर लगता है। मुझे पता है कि जो लोग दिन में ही छेड़छाड़ का विरोध नहीं करते, रात को तो वे आपकी चीख को भी अनसुना कर देंगे। महिलाओं को खुद ही सावधानी बरतते हुए अपनी गाड़ी की बजाय ऑफिस की कैब का इस्तेमाल करना चाहिए।´

महिला हितों के लिए काम करने वाले संस्थान सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर डॉक्टर रंजना कुमारी का मानना है कि महिलाओं की सुरक्षा के बारे में हम लोग बहुत कुछ बोल चुके हैं और अब उस पर अमल करने की बारी है। यह सच है कि रात को काम करने वाली महिलाएं अपने मन में भय महसूस करती हैं। ऐसे में सरकार और पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि उनके भय को दूर करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। डॉक्टर रंजना अपने पर्सनल एक्सपीरियंस के बारे में बताती हैं, `एक बार मैं बस में आ रही थी, तो उसके कंडक्टर ने ही मेरे साथ बदतमीजी शुरू कर दी। जब मैंने उतरने की कोशिश की, तो उसने बस चलाकर मुझे गिरा दिया। यह तो दिन की घटना है। अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि रात को सड़कों पर क्या हाल होता होगा।´

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