Monday 4 August, 2008

सिक्के की ताल पर चलती बस

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सिक्के की ठक... ठक... ठक... और एकाएक हवा से बातें करती बस रुक गई। ठक... की आवाज से काफी देर से रुकी बस एकदम चल पड़ी और लगातार ठक... ठक... ठक... ठक... ठक... की आवाज के बाद तो बस ने काफी देर तक रुकने का नाम ही नहीं लिया। ऐसे नजारे हम सभी लोग रोजाना देखते हैं कि भयानक गर्मी से परेशान लोग काफी देर से ड्राइवर से बस चलाने की रिक्वेस्ट कर रहे हैं, लेकिन उसके कान पर कोई जंू नहीं रेंग रही। जबकि, हेल्पर के सिक्के की खनखनाहट में ना जाने क्या जादू होता है कि बस तुरंत चल पड़ती है। ठीक ऐसा ही वाकया बस रुकवाने के मामले में भी होता है। जब ड्राइवर आपके स्टॉप पर बस नहीं रोकता और हेल्पर के सिक्के की आवाज पर बिना स्टॉप के भी बस रुक जाती है। इस तरह के नजारे न सिर्फ Žलू लाइन बल्कि डीटीसी की बसों में भी नजर आते हैं। ऐसे में पैसेंजर सोचते हैं कि आखिर सिक्के की आवाज में ऐसा क्या जादू होता है, जो ड्राइवर को बस रोकने के लिए मजबूर कर देता है? बस हेल्पर सनी ने बताया, `सिक्के की ठक...ठक हमारे और ड्राइवर के बीच की कोड लैंग्वेज होती है। बस में हेल्पर या कंडक्टर पीछे वाली खिड़की पर बैठता है। उसके लिए वहां बैठकर ड्राइवर को आवाज लगाकर बस रोकने या चलने के लिए बोलना मुमकिन नहीं होता। इसी प्रॉŽलम को सॉल्व करने के लिए सिक्के की आवाज से बात की जाती है। तीन-चार बार ठक-ठक करना बस रुकने, एक बार बस चलाने और लगातार ठक-ठक करना बस तेजी से चलाने का इशारा होता है।´ आखिर सिक्के की ठक-ठक को ही ड्राइवर-कंडक्टर की बातचीत का मीडियम क्यों बनाया गया? सनी के मुताबिक, `सिक्का एक ऐसी चीज है, जो कंडक्टर के पास हमेशा और आसानी से मौजूद रहता है। साथ ही इसकी आवाज आसानी से बस के एक कोने से ड्राइवर तक पहंुच जाती है। इसलिए सिक्के को ड्राइवर-कंडक्टर के बीच बातचीत के लिए यूज किया जाता है। वैसे, आजकल कुछ बसों में आपका नया ट्रेंड भी नजर आ जाएगा। अब कुछ बस मालिकों ने ड्राइवर के पास एक घंटी लगवा दी है, जिसका स्विच कंडक्टर के पास रहता है। वे बस को रुकवाने या चलवाने के लिए इस घंटी का यूज करते हैं।´ सीए के स्टूडेंट अंकित कहते हैं कि कंडक्टरों की यह लैंग्वेज हमारे लिए काफी नुकसान दायक साबित होती है। भले ही पैसेंजर अपने स्टॉप पर कितना ही शोर मचा ले या बस को हाथ से बजा ले, लेकिन ड्राइवर सिक्के की आवाज सुने बिना बस नहीं रोकता। सवारी चढ़ाने के वक्त तो ये लोग कहीं पर भी बस रोक कर खड़े हो जाते हैं, लेकिन सवारी उतारने के वक्त डीटीसी स्टॉप पर भी रोकने को तैयार नहीं होते और अपनी मनमानी करते हैं। कई बार सिक्के की आवाज पर बस नहीं रुकने पर पैसेंजर को चोट लगने का खतरा रहता है। गौरतलब है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बस वाले पैसेंजर्स की सुरक्षा की दृष्टि से शीशे पर सिक्का बजाकर बस ना रोकें, बल्कि इस काम के लिए कोई और तरीका अपनाएं। साथ ही बस को हरेक स्टॉप पर रोकें। उसके बाद कुछ बस मालिकों ने खानापूर्ति के लिए बसों में घंटी जरूर लगाई है, लेकिन कंडक्टर शायद ही कभी इसका यूज करते दिखाई देते हैं। दिल्ली यूनिवçर्सटी की स्टूडेंट शालिनी के मुताबिक, `बस वालों पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार का कोई असर दिखाई नहीं देता। बसों में घंटियां सिर्फ दिखाने के लिए लगाई गई हैं। उनमें से ज्यादातर तो खराब पड़ी हैं और कोई अगर ठीक भी है, तो उसका कोई यूज नहीं करता।´ सरकार और कोर्ट की तमाम कोशिशों के बावजूद बसों की ठक...ठक... पर रोक नहीं लग पा रही है। अब देखना पçŽलक को इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए कोई और कदम उठाया जाएगा या फिर बस वाले खुद ही लाइन पर आ जाएंगे।

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