Wednesday, 13 August 2008

कब टूटेगी यह चुप्पी......


इंसानी जिंदगी के बदलते तौर तरीको को वक़्त के साथ साथ समाज में मान्यता मिल जाती है, लेकिन सेक्सुअल पसंद में आ रहे बदलावों पर हमारा कानून और समाज दोनों चुप हैं। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट नें माना की होमोसेक्सुएलिटी को लेकर बने कानूनों पर फिर से विचार की जरुरत है। देखते हैं समाज की इस अलग तस्वीर को
होमोसेक्सुएलिटी एक ऐसा मुद्दा है, जिसके बारे में बात करना हमारे देश में पसंद नहीं किया जाता। अंग्रेजों के जमाने में बने कानून इंडियन पीनल कोड 1860 की धारा 377 के मुताबिक हमारे देश में होमोसेक्सुएलिटी को अपराध माना गया है। यह इंसानी फितरत होती है कि अगर किसी चीज पर रोक लगाई जाए, तो वह उसके खिलाफ जाकर देखने की कोशिश करता है। इसी का नतीजा है कि हमारे देश में अक्सर गे और लेस्बियन जोड़ो के अपने घरों से भागने के केस सामने आते रहते हैं। कई बार तो समाज की प्रताड़ना से बचने के लिए वे लोग स्यूसाइड जैसा कदम भी उठा लेते हैं। इसके बावजूद अभी तक सरकार द्वारा इस बारे में कोई पहल सामने नहीं आई है। हाल ही में माननीय बॉबे हाईकोर्ट द्वारा होमोसेक्सुएलिटी के मुद्दे पर पॉजिटिव कमेंट किए जाने से एक उम्मीद की किरण नजर आई है। बॉबे हाई कोर्ट के जस्टिस बिलाल नजाकी और जस्टिस शारदा बोबडे ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वक्त के साथ सामाजिक ढांचे में काफी बदलाव आ गया है, जिससे लोगों की सेक्सुअल पसंद चेंज हो गई है। इसे अननेचुरल नहीं माना जाना चाहिए। अब वह वक्त आ गया है, जब करीब एक सेंचुरी पहले बने कानूनों पर दोबारा से विचार किए जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि फिलहाल भारत में धारा 377 का उल्लंघन करने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है। जाने-माने वकील प्रशांत भूषण कहते हैं,`माननीय हाईकोर्ट ने एक जरूरी मुद्दे पर सही कमेंट किया है। कोर्ट द्वारा इस तरह की बात कहे जाने से सरकार के ऊपर धारा 377 पर दोबारा से विचार करने का दबाव पड़ेगा। सही मायनों में देखा जाए, तो यह धारा पहले से ही गैर संवैधानिक है।´ वहीं जाने-माने समाजशास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा, `जब अदालत की ही समझदारी खुल रही है, तो इस मुद्दे का स्वागत किया जाना चाहिए। दरअसल, अभी तक हमारे समाज में इस सेक्सुअल कल्चर को लेकर एक रहस्यमय माहौल रहा है। इस कल्चर में किशोर-किशोरी के बीच के संबंध,समलैंगिकता और वेश्यावृति जैसे मुद्दे शामिल हैं। इन मुद्दों पर बातचीत करने के लिए हमारा समाज कभी भी तैयार नहीं हुआ है।´ गौरतलब है कि भारत में ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी कोर्ट ने होमोसेक्सुएलिटी को अपराध मानने वाले कानून को बदलने की बात कही है। इसके बाद देश भर के गे और लेस्बियन संगठनों में उत्साह का माहौल है। उन्होंने इसका स्वागत किया है। नई दिल्ली स्थित नाज फाउंडेशन पिछले काफी समय से धारा 377 को खत्म किए जाने की मांग कर रहा है। उन्होंने धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर एक पीआईएल भी दायर कर रखी है। नाज फाउंडेशन के कोआडिनेटर राहुल सिंह कहते हैं कि हम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत करते हैं। अगर इंसान की सभी जरूरतें वक्त के साथ बदलती रहती हैं, तो फिर सेक्सुअल जरूरतों की अनदेखी कैसे की जा सकती है। अगर दो एडल्ट लोग अपनी पूर्ण सहमति से कोई संबंध कायम करना चाहते हैं, तो उन पर किसी भी तरह की रोक लगाना बिल्कुल गलत है। `वॉइस अगेन 377´ से जुड़े गे एक्टिविस्ट गौतम कहते हैं, `मैं कोर्ट की टिप्पणीसे पूरी तरह सहमत हूं। वास्तव में अब वह समय आ गया है जब करीब 150 साल पुरानी धारा 377 को खत्म किया जाना चाहिए। पिछले दिनों आई लॉ कमिशन की रिपोर्ट में भी इसे खत्म करने की सिफारिश की गई है। हमारे लिए इससे ज्यादा शर्म की बात और कुछ नहीं होगी कि हाल ही अपना नया संविधान बनाने वाले नेपाल ने अपने यहां होमोसेक्सुएलिटी को अपराध नहीं माना है।´ अमेरिका से आर्किटेक्ट का कोर्स कर रहे 27 साल के गौतम का मानना है, `इस कानून को खत्म करने से सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को होगा, जिन्हें इसके नाम पर परेशान किया जा रहा है। हमारे पास ऐसे कई केस आते हैं, जिनके समाज के ठेकेदारों द्वारा अपनी सेक्सुअल पसंद चेंज करने के लिए बाकायदा करंट के झटके देकर परेशान किया जाता है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जब हमारे देश में जात-पात और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता, तो सेक्सुअल जरूरतों के आधार पर कैसे किया जा सकता है।´ कई होमोसेक्सुअल संगठनों से जुड़ी लेस्बियन एक्टिविस्ट प्रवदा मेनन कहती हैं, `धारा 377 कानून जिस साम्राज्य से हमारे यहां आया था, वहां भी यह खत्म हो चुका है। जबकि हमारे यहां इसे अभी भी ढोया जा रहा है। हमारे संविधान में भारतीय नागरिकों को हर तरह की स्वतंत्रता दी गई है। अगर कोई महिला पुरुष साथ रह सकते हैं, तो समान लिंग के लोगों के साथ रहने में क्या बुराई है।´ क्या इस धारा को खत्म करने से सामाजिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचेगा? 43 साल की अविवाहित मेनन के मुताबिक, `हमारे सामाजिक ढांचे को दहेज हत्या और बाल यौन शोषण से भी नुकसान पहुँच रहा है। विधवा विवाह शुरू करने और सती प्रथा खत्म करने के वक्त भी यही कहा गया था कि इससे सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचेगा। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जिन लड़कियों के साथ बचपन में किसी पुरुष द्वारा कोई बुरा व्यवहार किया जाता है, वे बाद में लेस्बियन बन जाती हैं। इस हिसाब से तो हमारे देश की ज्यादातर महिलाएं लेस्बियन होनी चाहिए।´ ज्यादा दिनों की बात नहीं है जब राजधानी दिल्ली में हुई पहली गे परेड में देश भर से 500 से ज्यादा होमोसेक्सुअल एक्टिविस्ट आये थे। उन्होंने सरकार से धारा 377 को खत्म करने की मांग की। भारत में होमोसेक्सुअलिटी को सामाजिक और कानूनी स्वीकृति नहीं मिल पाने की वजह से परेड के दौरान उन्होंने अपने चेहरों पर मास्क लगाए हुए थे। साथ ही उन्होंने अपने हाथों में लिए हुए पोस्टरों में लिखा हुआ था कि प्लीज इस मास्क को हटाने में हमारी मदद कीजिए। प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं, `माननीय हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि एक ऐसा भी दिन आएगा कि होमोसेक्सुअल लोगों को अपने चेहरों पर मास्क लगाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। इन कानूनों के बदलने से हमारे ही समाज के एक अभिन्न अंग समलैगिंको को फिजूल के अपराधबोध से मुक्ति मिलेगी। लेकिन साथ ही इसकी नेगेटिव साइड की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। कानून में आपसी सहमति के आधार पर संबंध स्वीकार्य हों, लेकिन इसके माध्यम से क्रूरता को अनुमति ना दी जाए। खास तौर पर जेल, सेना और लड़कों के आवासीय स्कूलों में समलैगिंकता ने नाम पर काफी क्रूरता देखने को मिलती है। वहां कमजोर लोग अपने से मजबूत लोगों द्वारा यौन शोषण का शिकार बन जाते हैं।´ अगर दूसरे देशों पर नजर डालें, तो वहां होमोसेक्सुएलिटी को कानूनी मान्यता देने की मांग काफी पहले उठ चुकी थी। यही वजह है कि आज डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस और यूनाईटेड किंगडम समेत यूरोप के ज्यादातर देशों में होमोसेक्सुएलिटी के खिलाफ कोई कानून नहीं है। इसके अलावा स्पेन, बेल्जियम, नीदरलैंड, साउथ अफ्रीका, कनाडा और हाल ही में नार्वे समेत दुनिया के 6 देश गे मैरिज को मान्यता भी दे चुके हैं। सवाल यह उठता है कि जब समाज बदलने के साथ-साथ अब लोगों की सेक्सुअल पसंद में बदलाव आने के बावजूद हम कब तक उन बदले हुए लोगों की जरूरतों पर विचार नहीं करेंगे? माननीय हाईकोर्ट के होमोसेक्सुएलिटी पर कमेंट के बाद शायद अब वास्तव में वह वक्त आ गया है, जब विवादास्पद धारा 377 पर विचार किए जाने की जरूरत है!

1 comment:

  1. Validation of Homosexuality is agaust the Nature.
    We can not make any law which is agaust the Nature , if such thing is happens then it is blandar one made by human

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