Monday, 25 August 2008
सितारों से निराशा, जुगनूओं ने जगाई आशा
पेइचिंग ओलिंपिक खत्म हो गया है। भारत समेत तमाम देशों को मिले मेडल्स की गिनती करीब-करीब तय हो गई है। अगर अभिनव बिंद्रा के गोल्ड और सुशील कुमार, विजेंद्र कुमार के ब्रांन्ज मेडल को छोड़ दिया जाए, तो काफी उम्मीदों के साथ चाइना पहुंचे भारतीय दल को एक बार फिर निराशा ही हाथ लगी है। ओलिंपिक के लिए जाने से पहले से कुछ खिलाडियों को लेकर बड़े-बडे़ दावे किए गए थे। यह बात और है कि वे उन्हें हकीकत में बदलने में पूरी तरह नाकाम रहे। इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है कि जिन स्टार खिलाडियों से गोल्ड की उम्मीद की जा रही थी, वे क्वालिफाई करने में भी नाकाम रहे। जबकि कुछ अंजान `जुगनू´ नए सितारों के रूप में सामने आए हैं।
नहीं संभला उम्मीदों का ध्वज
लेफ्टिनेंट कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौर न सिर्फ भारतीय ओलिंपिक दल के ध्वजवाहक थे, बल्कि भारतीय उम्मीदों के भी `ध्वजवाहक´ थे। उन्होंने असली ध्वज तो उठा लिया, लेकिन `भारतीय उम्मीदों का ध्वज´नहीं संभाल पाए। गौरतलब है कि राठौर डबल ट्रैप शूटिंग के क्वालिफाइंग मुकाबले में ही बाहर हो गए। 2004 में एथेंस ओलिंपिक खेलो के दौरान सिल्वर मेडल जीतने के बाद चारों और उनके ही नाम की चर्चा थी। बतौर मेजर पदक जीतने वाले राठौर को आर्मी ने आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल बना दिया। पेज थ्री की दुनिया ने भी क्रिकेट और बॉलिवुड से अलग उभरे इस स्टार को हाथोंहाथ लिया। सभी ने सिल्वर जीतने वाले राठौर से पेइचिंग ओलिंपिक में गोल्ड का सपना देखा। मेलबर्न कॉमनवेल्थ गेम्स तक तो वह ठीकठाक फॉर्म में थे, लेकिन उसके बाद राठौर फॉर्म से बाहर हो गए। शायद पेज थ्री पार्टियों में बिजी रहने की वजह से उन्हें प्रैक्टस के लिए वक्त नहीं मिल पाया होगा।
फ्लॉप हो गईं सानिया
सानिया मिर्जा भारतीय पेज थ्री का एक जाना-माना चेहरा हैं। लॉन टेनिस जैसे खेल में किसी ग्लैमरस लड़की की उपस्थिति को हाथोंहाथ लिया गया। साथ ही स्कर्ट को लेकर उठे विवादों ने उन्हें और ज्यादा लाइम लाइट में ला दिया। शाहिद कपूर के साथ अपने `कनेक्शन´ की वजह से सानिया लगातार खबरों में बनीं रहती हैं। ओलिंपिक के लिए जाने से पहले सानिया के शाहिद के साथ `किस्मत कनेक्शन´ का स्पेशल शो देखने की भी खबरें हैं। शायद इस वजह से उन्हें प्रैक्टस के लिए वक्त नहीं मिल पाया होगा। इसलिए ओलिंपिक मार्च पास्ट के लिए तैयार होने के वक्त भी वह `प्रैक्टस´ में बिजी थीं। यही वजह थी कि मार्च पास्ट में वह ऑफिशल ड्रेस ग्रीन साड़ी की बजाय ट्रैक सूट में नजर आईं।
अंजू की फाउल जंप
राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित खेल पुरस्कारों से सम्मानित अंजू बॉबी जॉर्ज से इस ओलिंपिक में काफी उम्मीदें लगाई गई थीं। कहा जा रहा था कि वह कभी भी कोई चमत्कार करने की क्षमता रखती हैं। और अंजू ने वाकई में `चमत्कार´ कर दिखाया। क्वालिफाइंग राउंड के दौरान तीन फाउल जंप लगाकर उन्होंने वाकई में `चमत्कार´ ही किया है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि 2003 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत के लिए पहली बार कोई मेडल जीतने वाली एथलीट इतने शर्मनाक तरीके से ओलिंपिक से बाहर होगी। 2004 में एथेंस ओलिंपिक में उन्होंने 6.7 मीटर की छलांग लगाकर छठा स्थान और 2006 में वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था। लेकिन इस साल अंजू 6.5 मीटर की छलांग भी नहीं लगा पाई थीं। उनके हालिया प्रदर्शन को देखते हुए उड़न सिख मिल्खा सिंह ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि उनमें पदक जीतने का दम नहीं है।
ले डूबी आपसी तकरार
2004 के ओलिंपिक में भारत के लिए एकलौता मेडल (ब्रान्ज) जीतने वाले लिएंडर पेस और स्टार टेनिस प्लेयर महेश भूपति की जोड़ी से देश ने काफी उम्मीदें पाल रखी थीं। गौरतलब है कि पिछले काफी दिनों से यह जोड़ी साथ में मैदान पर नहीं उतरी है। इसे ओलिंपिक मेडल जीतने का का प्रेशर ही कहेंगे कि दोनों एक बार फिर से जोड़ी बनाने को मजबूर हो गए। लेकिन उन्हें साथ में प्रैक्टस करने का पूरा वक्त नहीं मिल पाया। जाहिर है कि काफी दिनों बाद साथ खेलने पर उन्हें आपसी टयूनिंग बैठाने में भी परेशानी आई होगी। इन्हीं वजहों से पेस-भूपति की जोड़ी ने क्वॉर्टर फाइनल तक का सफर तो तय कर लिया, लेकिन वहां रोजर फेडरर और वावरिंका की जोड़ी से पार नहीं पा सके। अब शायद दोनों ही यह सोच रहे होंगे कि काश पहले से साथ में प्रैक्टस कर ली होती, तो ओलिंपिक में और बेहतर कर पाते। लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत!
भारत को मिले नए स्टार
`स्टार´ खिलाडियों निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद इस ओलिंपिक ने देश को कुछ ऐसे सितारे दिए, जिन्होंने आड़े वक्त पर अपने प्रदर्शन से देश का नाम ऊंचा किया। इनमें से अभिनव बिंद्रा को तो लोग फिर भी पहले से जानते थे। गौरतलब है कि उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड मिल चुका है। लेकिन सुशील कुमार, विजेंद्र कुमार, जितेंद्र कुमार, अखिल कुमार, साइना नेहवाल और योगेश्वर दत्त जैसे खिलाडियों को इस पेइचिंग ओलिंपिक की उपलब्धि ही कहा जाएगा।
क्वॉर्टर फाइनल मेनिया
काश भारतीय खिलाड़ी थोड़ा और ज्यादा प्रेशर झेलने का माद्दा रखते, तो आज ओलिंपिक मेडल लिस्ट में भारत के नाम के आगे लिखे मेडलों की संख्या कुछ ज्यादा होती। अगर भारतीय खिलाडियों के ओलिंपिक प्रदर्शन पर नजर डाली जाए, तो वे अपनी कड़ी मेहनत के बल पर पहला, दूसरा राउंड पार करके क्वॉर्टर फाइनल में तो पहुँच गए। देश ने उनसे मेडल की उम्मीदें बांध ली, क्योंकि क्वॉर्टर फाइनल में जीतने पर ब्रांन्ज मेडल पक्का हो जाता है। लेकिन यहां का प्रेशर नहीं झेल पाए और बिखर गए।
क्वॉर्टर फाइनल में आउट हुए खिलाड़ी
साइना नेहवाल - बैडमिंटन
बोम्ब्याला देवी, डोली बनर्जी, परिणीता - तीरंदाजी
लिएंडर पेस महेश भूपति - टेनिस
योगेश्वर दत्त - कुश्ती
अखिल कुमार - मुक्केबाजी
जितेंद्र कुमार- मुक्केबाजी
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badhiya aalekh..achcha lekha jokha prastut kiya aapne olympic mein bharteey pradarshan ka
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है. सस्नेह
ReplyDeleteyahi hota aaya hai dost, jin se hame ashayen thhi unhe to motaai chadh chuki thhi, kyonki woh to khaye aghaye log hain. lekin jo maati ke laalon ne kiar dikhaya uski taarif karni chahiye. baharhaal, iss aalekh ke liye badhai
ReplyDeleteब्लॉग की गलियों में आपका हार्दिक अभिनन्दन!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट देखकर ये तो कह ही सकता हूँ कि अपने जज्बे को बनाए रखिये और सपने देखना कभी न छोडिये.
कभी फ़ुर्सत मिले तो मेरे दिन-रात भी ज़रूर देख आयें.
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खेल में मेरी रूचि नही अपितु आपका लेखन उम्दा है : कभी समय निकाल कर इधर भी नज़र करें
ReplyDeletehttp://manoria.blog.co.in and http://manoriablospot.com
मेरठियों का ब्लागजगत में स्वागत है। अच्छी शुरूआत है। बधाई।
ReplyDeleteसचमुच सितारों ने निराश किया और जुगनुओं ने आस जगाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख, बधाई।
bahut acha satya evam sateek likha aapne
ReplyDeleteNew Post :
मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
खेल संघों से नेताओं का कब्जा हटा दिया जाए तो गली के छोकरे भी ऐसा प्रदर्शन करने लगेंगे। आपका-पवन निशान्त
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