Thursday, 4 September 2008

डूसू इलेक्शन में पोस्टर के रंग


डीयू स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन का रंग न सिर्फ यूनिवर्सिटी, बल्कि पूरी दिल्ली पर चढ़ता है। चाहे कॉलोनी हो या सड़क, फ्लाईओवर हो या बिजली के खंभे, चुनावी पोस्टर्स से अटे रहते हैं। जाहिर है, इतने बड़े लेवल पर चुनाव प्रचार करने में काफी खर्च आता है। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि विधानसभा इलेक्शन, डीयू इलेक्शन के मुकाबले सस्ता पड़ता है। लेकिन इस बार फिजा बदल सकती है। स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स में पैसे के जोर को रोकने के लिए डीयू एडमिनिस्ट्रेशन ने इस साल इलेक्शन में प्रिंटेड पोस्टर्स को बैन कर दिया है। अब पूरे शहर की बजाय चुनावी पोस्टर्स सिर्फ कॉलेजों की वॉल ऑफ डेमोक्रेसी पर लगाए जाएंगे और वह भी हैंडमेड।
हालांकि पिछली बार के चुनाव में भी इस तरह के कदम उठाने की बातें कही गई थीं, लेकिन उन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया सका और इस बार भी मामला ढीला ही लग रहा है। प्रशासन ने प्रिंटेड पोस्टर्स पर पाबंदी के लिए सत कदम तो उठाए हैं, लेकिन स्टूडेंट लीडर्स भी कम नहीं हैं। उन्होंने नियमों की काट ढूंढ ली है। यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने किसी कैंडिडेट का फोटो लगाकर वोट मांगने वाले पोस्टर को बैन किया है, किसी और तरह के पोस्टर को नहीं। अगर जॉइन एबीवीपी या फिर जॉइन एनएसयूआई वाले पोस्टर पर कैंडिडेट की फोटो लगा दी जाए, तो कोई परेशानी नहीं है। बस इसी का फायदा छात्र नेता उठा रहे हैं। नॉर्थ कैंपस के कॉलेज इस तरह के पोस्टर्स से अटे पड़े हैं, जबकि हैंडमेड पोस्टर लगाने के लिए फिक्स की गई `वॉल ऑफ डेमोक्रेसी´ खाली पड़ी हैं। काफी ढूंढने पर रामजस कॉलेज के सामने वाली `वॉल ऑफ डेमोक्रेसी´ पर गिनती के हैंडमेड पोस्टर नजर आए। एनएसयूआई के एक कार्यकर्ता ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि प्रिंटेड पोस्टर को बैन किया गया है, लेकिन प्रिंटेड हैंड बिल पर कोई रोक नहीं है, इसलिए हम पोस्टर की बजाय हैंड बिल का यूज प्रचार में कर रहे हैं।
डूसू के चीफ इलेक्शन ऑफिसर गुरमीत सिंह भी यह मानते हैं कि अगर पार्टी द्वारा अपने प्रचार के लिए छपवाए गए किसी पोस्टर में कैंडिडेट की फोटो लगवा दी जाती है, तो वह प्रतिबंध के दायरे में नहीं आता। लेकिन यह भी तो अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव प्रचार है? इस सवाल पर सिंह कहते हैं, `अगर किसी ने जॉइन एनएसयूआई या जॉइन एबीवीपी के पोस्टर लगा रखे हैं, तो यह प्रतिबंध के दायरे से बाहर है।´ लेकिन अगर कोई कैंडिडेट अपने किसी विरोधी कैंडिडेट के पोस्टर छपवा कर लगवा दे,तो? गुरमीत कहते हैं, `तो किसी पर एकदम से कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। हम नोटिस देकर उन्हें बुलाएंगे, उनका पक्ष सुनने के बाद ही कार्रवाई की जाएगी।´
पोस्टरों पर पाबंदी को लेकर भले ही यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन की सोच कुछ भी रही हो, लेकिन स्टूडेंट्स यूनियन इस फैसले से खुश नहीं हैं। एनएसयूआई के प्रवक्ता आनंद पांडे बताते हैं, `सबसे बड़ी बात यह है कि पोस्टर लगाना कोई गुनाह नहीं है, तो फिर उन्हें बैन क्यों किया जा रहा है। सच तो यह है कि इस वक्त स्टूडेंट पॉलिटिक्स एक बड़े षडयंत्र की शिकार हो रही है। जब नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध की जाती हैं, तो हमारे साथ भेदभाव क्यों? अगर यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन नहीं चाहता कि हम लोग पोस्टर लगाएं, तो फिर उन्हें अमेरिकन यूनिवर्सिटीज की तर्ज पर कोई प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना चाहिए।´
दूसरी ओर, छात्र राजनीति के पुराने खिलाड़ी एबीवीपी के प्रदेश सहमंत्री विकास दहिया कहते हैं, `डीयू बहुत बड़ा कैंपस है। यहां आप स्टूडेंट टु स्टूडेंट एप्रोच नहीं कर सकते। इसलिए प्रिंटेड पोस्टर ही एक सहारा था। जहां प्रिंटेड पोस्टर की कॉस्ट एक से डेढ़ रुपए होती है, वहीं हैंडमेड की कॉस्ट इसके कई गुना आती है। जाहिर है, अब हम उस लेवल पर प्रचार नहीं कर पाएंगे। इसलिए यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को चाहिए कि वह प्रेजिडेंशल डिबेट जैसे आयोजन करके कैंडिडेट्स को अपने प्रचार का मौका दे।

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